



पितृ पक्ष विशेष
सागर
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी भादो के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से चौबे परिवार के चौथी पीढ़ी के सदस्य एवं विगत 29 वर्ष से तालाब पर चकरा घाट पर तर्पण का कार्य सामूहिक रूप से करवा रहे हैं। पंडित यशोवर्धन चौबे ने बताया कि यह यम/ नियम /संयम /में समाहित अपने पितरों की ऋण से उऋणी होने के लिए भादों की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से कुआर के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक क्रमशः15 दिन तक पित्रचर्या नाम का वह शब्द जो पित्रो की तृप्ति और भुक्ती मुक्ती के लिये प्राप्ति का कारक है।
पितृ के आशीर्वाद से वंश वृद्धि, स्वास्थ्य में वृद्धि, व्यापार में वृद्धि, संतान की आयु में वृद्धि, घर परिवार में सुख और शांति बनी रहती है और जैसे देवता और ऋषि हमें सुख शांति का आशीर्वाद वर्ष भर देते हैं वैसे ही पितृ भी हमें आशीर्वाद दें इन 15 दिनों मे इसलिए यह विशेष प्रयोजन होता है।
पंडित श्री चौबे ने बताया कि प्रत्येक सनातनी संस्कारित संतान के लिए तीन ऋण बताए गए हैं पहले देव ऋण दूसरा ऋषि ऋणऔर तीसरा पितृ ऋण इनमें हम देव ऋण के लिये हम वर्ष भर देवताओ का 84 लाख देवताओं के रूप में वर्ष भर पूजन करते हैं। उनका आशीर्वाद लेते हैं ठीक इसी तरह से ऋषि ऋण से निवृत्ति के लिए हम उनके द्वारा दिए गए मूल मित्रों का जाप करते हैं हवन और पूजन में उनका बारंबार आवाहन के रूप में ध्यान करते हैं वर्ष भर उनका हम नमन करते हैं परंतु पितृ से संबंधित आराधना के लिए वर्ष भर में केवल सूर्य जब कन्या राशि में प्रवेश करते हैं तो भादो मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक क्रमशः इन 15 दिनों में समस्त पुराण सनातन धर्म के कह गए हैं उन्हें मूल रूप से यही कहा गया है कि केवल और केवल इन 15 दिनों में पितृ आराधना से बढ़कर और कोई कार्य नहीं किया जाता है देवता और ऋषियों को प्रणाम करके केवल विशेष रूप से जो हमारे पूर्वज हैं उनकी भक्ति मुक्ति और तृप्ति के लिए हम उनका आवाहन नमन करते हैं जो हमारे पूर्वज हैं उनको हम पितृ नाम से संबोधित करते हैं।
व्यक्ति 15 दिन तर्पण करता है चाहे जलाशय पर या घर पर उसका मूल सार यही है। प्रातः काल उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर सबसे पहले वह तर्पण करता है उसके बाद घर पर जाकर घर की देहरी पर दो जोड़ी चरण बनाए जाते हैं उनका चंदन रोड़ी चावल लगाकर पूजन करता है फिर लकड़ी के पटा पर कुश को रखकर उनका पूजन करके फिर भोजन के 4 भाग निकलता है पहला कुत्ता दूसरा कौवा तीसरा कन्या और चौथा गाय का इसके बाद वह फिर अग्नि में तीन बार घी छोड़ता है और तीन बार शक्कर या गुड छोड़ता है और एक बार धूप फिर इसके बाद एक तेल का दिया दक्षिण की और उजियार कर उसमें प्रति दिवस बढ़ते क्रम में एक तिल का दाना डालता है।