



सागर.
डॉक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर के सेंटर फॉर एडवांस रिसर्च द्वारा आचार्य सर प्रफुल्ल चंद्र रे की याद में हाई रेजोल्यूशन माइक्रोस्कोपी पर पांच दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला एवं फैकेल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम 20 अगस्त से 24 अगस्त 2024 के मध्य कार्यशाला आयोजित होगी. विश्वविद्यालय में कई अत्यधिक परिष्कृत उपकरण है जिनकी ट्रेनिंग नई पीढ़ी के लिए अत्यावश्यक है. इसी आवश्यकता को देखते हुए विश्वविद्यालय की कुलगुरु प्रो. नीलिमा गुप्ता की पहल पर विश्वविद्यालय अलग-अलग इंस्ट्रूमेंट पर कार्यशाला आयोजित कर रहा है. इसी तारतम्य में पहली कार्यशाला हाई रेजोल्यूशन माइक्रोस्कोपिक पर आयोजित की जा रही है.
कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में विश्वविद्यालय की कुलगुरु एवं उदघाटन सत्र की अध्यक्षता कर रही प्रो. नीलिमा गुप्ता ने विश्वविद्यालय में उपस्थित विशिष्ट उपकरणों को मध्य भारत में एक धरोहर की तरह देखा. प्रत्येक प्रतिभागी को इंस्ट्रूमेंट पर स्किल होने का और खुद अपने हाथ से इंस्ट्रूमेंट को चला कर देखने का अनुरोध किया ताकि वह केवल हाई रेजोल्यूशन माइक्रोस्कोपिक के बारे में पढ़े ही नहीं बल्कि उसका इस्तेमाल करना भी सीख सके. शिक्षकों को उन्होंने अपने शोधों में ज्यादा से ज्यादा हाई रेजोल्यूशन माइक्रोस्कोपी का उपयोग करने पर जोड़ दिया. आचार्य सर प्रफुल्ल चंद्र रे के योगदानों को याद करते हुए उन्होंने नई पीढ़ी को उन्हीं की तरह गंभीर कार्य करने को प्रेरित किया.
कार्यशाला के दूसरे सेशन में इंडियन जूलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया के पूर्व निदेशक डॉक्टर कैलाश चंद्र ने लुप्त होती प्रजातियों के बारे में बड़ा सारगर्भित उद्बोधन दिया. उन्होंने बताया कि आज माइक्रोस्कोपिक के युग में प्रजातियों को खोजना आसान हो गया है. बायोडायवर्सिटी को समझने के लिए हमें उच्च संसाधनों की आवश्यकता है. कार्यक्रम के विशिष्ट वक्ता प्रोफेसर एसपी गौतम ने भारतीय ज्ञान परंपरा और उसमे वर्णित परमाणु, अणु, इलेक्ट्रॉन और फोटोन की शक्तियों के लिए हाई रेजोल्यूशन माइक्रोस्कॉपी को ज्ञान एवं कर्म चक्षु से बड़े रोचक अंदाज में जोड़ा. उन्होंने बताया कि भारतीय ज्ञान परंपरा में हम प्रकाश से लेकर कण और कण से लेकर के ब्रह्मांड के बारे में बहुत कुछ वर्णित कर चुके थे। विश्वविद्यालय के शोध एवं विकास विभाग के निदेशक प्रो. हेरल थॉमस ने सेंटर फॉर एडवांस्ड रिसर्च की विशेषताएं एवं कार्य शैली पर प्रकाश डाला.
कार्यशाला के प्रथम दिन के अंतिम सत्र में डॉ पुष्पाल घोष ने अपना वक्तव्य दिया. जिसका विषय था ऐन ओडिसी ऑफ इंडियन साइंसेस. जिस में भारतीय विज्ञान परंपरा के विकास का वर्णन किया गया. उन्होंने बताया कि भारतीय विज्ञान कैसे चरम पर पहुंचा, कैसे उसका पतन हुआ और फिर धीरे-धीरे कैसे अब उठ रहा है. कुल मिलाकर आज का सेशन भारतीय विज्ञान परंपरा और सूक्ष्म से अलौकिक के विस्तार के बारे में ज्यादा रहा. कल से कार्यक्रम सूक्ष्म पर फोकस हो जाएगा. इस सारगर्भित कार्यशाला के कोपेट्रॉन प्रो. हरेल थॉमस एवं प्रो. श्वेता यादव रहे. समन्वयक डॉ. पुष्पम घोष, डॉ. विवेक प्रकाश मालवीय और डॉ. योगेश भार्गव थे. कार्यक्रम के ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ. विवेक प्रकाश मालवीय थे. संचालन डॉ. अभिलाषा दुर्गावंशी ने किया. कार्यक्रम में प्रो. नवीन कांगो, प्रो. जी.एस. पाटिल, प्रो. अस्मिता गजभिए, प्रो. ए.पी. मिश्रा आदि विशिष्ट गणमान्य लोग मौजूद थे. इस कार्यशाला में देश भर के 45 प्रतिभागी भाग ले रहे है. साथ ही इस कार्यक्रम में केंद्रीय विद्यालय के 35 विद्यार्थी सहभागिता कर रहे है.