



सागर
पहले हमारे घरों में गाय जैसे पवित्र पशुओं को स्थान दिया जाता था, जो हमारी संस्कृति और सनातन परंपरा के प्रतीक माने जाते हैं, लेकिन आजकल लोग कुत्ते पालने को अधिक महत्व दे रहे हैं।
ऐसे घर जहाँ कुत्ते की पूजा की जाती है, वहाँ देवी-देवता और पितृगण अपनी उपस्थिति स्वीकार नहीं करते। यह हमारी सांस्कृतिक मूल्यों से दूर जाने का प्रतीक है।
ग्राम सेमाढाना में चल रही श्री नर्मदा महापुराण सप्तम दिवस में पंडित कमलेश शास्त्री ने कहा
पहले जब घर में मेहमान आते थे तो घरवाले खुशी से स्वागत करते थे, परंतु आज के समय में मेहमानों को बोझ समझा जाता है। यह मानसिकता हमारे समाज के मूल स्वभाव – अतिथि देवो भवः – के विपरीत है।
बाएं हाथ से जल पीना शास्त्रों में मदिरा सेवन के समान माना गया है। इसी प्रकार खड़े होकर जल या भोजन करना भी अनुचित बताया गया, क्योंकि यह पशुवत व्यवहार है। मानव को भोजन और जल का सेवन हमेशा शांति से, आसन में बैठकर करना चाहिए।
जब भी पृथ्वी पर अधर्म बढ़ता है, तब भगवान किसी न किसी रूप में अवतार लेकर धर्म की स्थापना करते हैं। यह सनातन धर्म का मूल सिद्धांत है – धर्म की रक्षा के लिए भगवान स्वयं अवतरित होते हैं। जब बांग्लादेश में हिंदुओं की हत्या हुई, तब भी हम मौन रहे, और आज स्थिति यहाँ तक पहुँच गई है कि हमारे ही देश के राज्य बंगाल में हिंदुओं के साथ हिंसा हो रही है और देश चुप है। उन्होंने यह आह्वान किया कि अब मौन रहने का समय नहीं है ।
शास्त्रों में तीन वध शिशु वध, ब्राह्मण वध और स्त्री वध को सख्त निषेध माना गया है। इन चारों का वध अधर्म की पराकाष्ठा मानी गई।
हर सनातनी अपने घरों में सनातन संस्कृति को जीवित रखे, स्वयं भी एक सच्चा सनातनी बने और अपने बच्चों को भी रामायण और गीता जैसे ग्रंथों का अध्ययन कराए। रामायण, श्रीमद्भगवद्गीता, उपनिषद, महाभारत जैसे ग्रंथों का अध्ययन केवल धार्मिक उद्देश्य से नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला सीखने के लिए किया जाना चाहिए। ये ग्रंथ हमारे जीवन का मार्गदर्शन करते हैं।
यदि देश के 25 करोड़ सनातनी निष्ठा से भजन करना आरंभ कर दें, तो भारत स्वतः एक हिंदू राष्ट्र के रूप में स्थापित हो जाएगा। उन्होंने अंत में यह संदेश दिया कि धर्म की रक्षा तभी संभव है जब हम अपनी संस्कृति और परंपराओं को घर-घर में पुनर्जीवित करें और उसका पालन करें।