नो मुख वाली मां भगवती की बड़ी माई की झांकी

सागर

उपनगरीय क्षेत्र मकरोनिया के पंडित दीनदयाल नगर मार्केट में रखी मार्केट वाली बड़ी माई की झांकी मैं नो मुख वाली मां भगवती की स्थापना की गई, दुर्गा समिति मार्केट के अध्यक्ष सिद्धार्थ सिंह बामोरा ने बताया कि प्रतिवर्ष मां की स्थापना स्थानीय कॉलोनी वासियों एवं मार्केट के सभी सदस्यों के सहयोग से भव्य और दिव्य श्री विग्रह का स्थापना होती है मां के दर्शन करने के लिए दूर दराज से भक्त गण आते हैं उन्हें पर्याप्त प्रसाद की व्यवस्था की जाती है इस वर्ष हम सभी ने नो मुख वाली मां भगवती की स्थापना की समिति से जुड़े हुए श्री राम दरबार मंदिर के महंत गृहस्थ संत केशव गिरी महाराज ने बताया कि मां भगवती के नौ मुखो का स्वरूप 9 देवियों से है जो नवरात्रि में 9 दिन में हर दिन का अलग अलग प्रतिनिधित्व करती हैं प्रथम मुख शैलपुत्री: देवी पार्वती का है जो शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है. शैल का शाब्दिक अर्थ पर्वत होता है. पर्वतराज हिमालय के घर में पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया और यही अखंड ब्रह्मांड नायक भूत भावन प्रलयंकर बाबा भोलेनाथ की धर्मपत्नी हुई जिन्हें पार्वती भी कहा जाता है .2 दूसरा मुख ब्रह्मचारिणी: ब्रह्म का अर्थ है तपस्या, कठोर तपस्या का आचरण करने वाली देवी को ब्रह्मचारिणी कहा जाता है. भगवान शिव को पाने के लिए माता पार्वती ने वर्षों तक कठोर तप किया था. इसलिए माता को ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना गया…… 3 तीसरा मुख चंद्रघंटा: देवी के मस्तक पर अर्ध चंद्र के आकार का तिलक विराजमान है इसीलिए इनको चंद्रघंटा के नाम से भी जाना जाता है.

4 चौथा मुख कूष्मांडा: देवी में ब्रह्मांड को उत्पन्न करने की शक्ति व्याप्त है और वे उदर से अंड तक अपने भीतर ब्रह्मांड को समेटे हुए हैं, इसलिए मातारानी को कूष्मांडा नाम से जाना जाता है.

5 पांचवा मुख स्कंदमाता: माता पार्वती कार्तिकेय की मां हैं. कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है. इस तरह स्कंद की माता यानी स्कंदमाता कहलाती हैं.

6. छटवा मुख कात्यायिनी: जब महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया था, तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया. इस देवी की सर्वप्रथम पूजा महर्षि कात्यायन ने की थी. इसलिए इन्हें कात्यायनी के नाम से जाना गया.

7 सातवा मुख कालरात्रि: मां भगवती के सातवें रूप को कालरात्रि कहते हैं. काल यानी संकट, जिसमें हर तरह का संकट खत्म कर देने की शक्ति हो, वो माता कालरात्रि हैं. माता कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं और राक्षसों का वध करने वाली हैं. माता के इस रूप के पूजन से सभी संकटों का नाश होताहै। 8आठवा मुख महागौरी: कहा जाता है कि जब भगवान शिव को पाने के लिए माता ने इतना कठोर तप किया था कि वे काली पड़ गई थीं. जब महादेव उनकी तप से प्रसन्न हुए और उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया, तब भोलेनाथ ने उनके शरीर को गंगाजी के पवित्र जल से धोया था. इसके बाद माता का शरीर विद्युत प्रभा के समान अत्यंत कांतिमान-गौर हो उठा था. इसके स्वरूप को महागौरी के नाम से जाना गया.

9 नवमा मुख सिद्धिदात्री: अपने भक्तों को सर्व सिद्धियां प्रदान करने वाली देवी होने के कारण इन्हें सिद्धिदात्री कहा जाता है. माना जाता है कि इनकी पूजा करने से बाकी देवियों की उपासना हो जाती है और भक्त के कठिन से कठिन काम भी सरल हो जाते हैं.
महाराज जी ने बताया कि सबसे ऊपर भगवान शिव का मुख है मानो यह हमें यह संदेश प्रदान कर रहे है शिव जी के पास भी जब शिवा है तभी शिव का महत्व है जब तक भगवान शिव के पास में शक्ति नहीं अर्थात उनकी धर्मपत्नी नहीं तब तक शिव भी शव के समान है।

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