



विवेक साहू गढ़ाकोटा
गढ़ाकोटा के जगदीश मंदिर प्रांगण में चल रही भागवत कथा
अंतिम दिन कथा व्यास पंडित नारायण शास्त्री महाराज ने सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि मित्रता करो, तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी करो। सच्चा मित्र वही है, जो अपने मित्र की परेशानी को समझे और बिना बताए ही मदद कर दे। परंतु आजकल स्वार्थ की मित्रता रह गई है। जब तक स्वार्थ सिद्ध नहीं होता है, तब तक मित्रता रहती है। सुदामा चरित्र व सुखदेव विदाई का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि मित्रता में गरीबी और अमीरी नहीं देखनी चाहिए। मित्र एक दूसरे का पूरक होता है। उन्होंने कहा कि मित्रता कैसे निभाई जाए भगवान श्री कृष्ण का सुदामा जी से समझा जा सकता है। सुदामा अपनी पत्नी के आग्रह पर अपने मित्र कृष्ण से मिलने के लिए द्वारिका पहुंचे तो द्वारकाधीश के महल का पता पूछा और महल की ओर आगे बढ़ने लगे लेकिन द्वार पर द्वार पालों ने सुदामा को भिक्षा मांगने वाला समझ कर रोक दिया। तब उन्होंने कहा कि वह कृष्ण के मित्र हैं इस पर द्वारपाल महल में गए और प्रभु से कहा कोई मिलने आया है ।इस पर द्वारपाल ने कहा कि अपना नाम सुदामा बता रहा है जैसे ही द्वारपाल के मुंह से उन्होंने सुदामा का नाम सुना और सुदामा सुदामा कहते हैं यह तेजी से द्वार की तरफ भागे। सामने सुदामा सखा को देख कर अपने सीने से लगा लिया ।सुदामा ने भी कन्हैया कन्हैया कहकर गले लगाया।
कथा के बीच-बीच में भजनों पर श्रद्धालुओं ने नृत्य भी किया।
कथा यजमान बसंत यादव श्रीमती अनीता यादव थे।
कथा सुनने में महामंडलेश्वर हरिदास महाराज, महंत कमलापत दास, श्याम सुंदर चौबे , शिव दत्त शुक्ला ,मुन्नालाल साहू, पंडित सेवक राम उपाध्याय, बरेला वाले, मनोज तिवारी, सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल थे।