



सागर
डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय के रसायन विभाग में आचार्य प्रफुल्ल चन्द्रे का जन्म दिवस धूमधाम से मनाया गया।
कार्यक्रम को किसी नेशनल कांफ्रेंस के तर्ज़ पर तैयार किया गया, लेकिन स्पीकर लोकल थे। इस कसे हुए कार्यक्रम में साइंटिफिक लेक्चर्स भी थे, बच्चों की सहभागिता क्विज और ओरल प्रेजेंटेशन के द्वारा भी हुई। और साथ ही भारतीय ज्ञान परंपरा का ढंग से समन्वय भी किया गया । इस विषय पर विभागाध्यक्ष प्रोफेसर ए पी मिश्रा ने कहा कि समय आ गया है कि हम अपनी चीजों को अपना कह सके। आज भी यह कठिन है कि हम भारतीय विज्ञान परंपरा को स्थापित कर सके और हम यह कठिनाई महसूस करते हैं। आचार्य सर पीसी रे के समय यह चुन्नौती और भी बड़ी थी। और उन्होंने केवल हम में विश्वास नहीं भरा है बल्कि दुनिया के सामने भारतीय योगदानो को मजबूती से स्थापित किया है। आचार्य सर पी सी रे भारतीय रसायनज्ञों के आत्मविश्वास को चरम तक पहुंचने वाले व्यक्ति हैं। और इसीलिए हम हर साल उनकी जयंती इतनी श्रद्धा के साथ मनाते हैं। हमें हमारे शास्त्रों में बसे हुए ज्ञान विज्ञान को खोज कर अब बाहर निकलना है और आज के संदर्भ में उनके महत्व को स्थापित करना है। विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए आत्म गौरव बहुत जरूरी है क्योंकि अन्वेषण के लिए इंस्पिरेशन, इनट्यूशन और मोटिवेशन तीनों बहुत जरूरी है। पहले भी हमने किया था, अब भी हम ही करेंगे और हम कुछ भी कर सकते हैं। अपने पुरानी चीजों को स्थापित करके हमें नई खोज की तरफ बढ़ने की जरूरत है।
कार्यक्रम के प्रथम दिन चार वैज्ञानिक व्याख्यान रखे गए। डॉ पुष्पल घोष ने ऐन ओडिसी ऑफ इंडियन साइंसेज फ्रॉम एंसिएंट टू रेनेसस पर अपना वक्तव्य दिया। उन्होंने प्राचीन समय में भारत में हुए वैज्ञानिक उत्थान के बारे में विस्तार से तथ्यो के साथ बताया। उस चरम समय के बाद भारत के वैज्ञानिक पतन और उनके कारणों को भी बताया। अब हम फिर से वैज्ञानिक उत्थान की तरफ बढ़ रहे हैं। कार्यक्रम में भारतीय विज्ञान परंपरा के साथ-साथ मौजूदा वैज्ञानिक खोजों का बड़ा सुंदर समावेश किया गया। डॉक्टर अभिलाषा दुर्गवंशी ने क्रोमेटोग्राफी पर अपना वक्तव्य दिया। और बच्चों को बताया कि मौजूदा वैज्ञानिक परिस्थिति में सेपरेशन टेक्निक कितना जरूरी है।। एक बंधे हुए लेक्चर में उन्होंने क्रोमेटोग्राफी के सिद्धांत से लेकर उसके एप्लीकेशन के बारे में सब कुछ बताया।
तीसरा व्याख्यान वैदिक गणित के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर आयुष गुप्ता जी ने दिया। उन्होंने कहा नाम बदल देने से ज्ञान नहीं बदल जाता। हमारे यहां यौगिक के नाम जरूर अलग हो सकते हैं। परंतु गुणधर्म सही ढंग से रिपोर्ट किया गया है। परमाणु के इतिहास को जब आप पढ़ते हो तो जहां आप डाल्टन, थॉमसन, रदरफोर्ड और नील्स बोर के बारे में बताते हो वहीं महर्षि कनाद के बारे में बताना भी उतना ही जरूरी है। इतना ही नहीं भारत में सबएटोमिक पार्टिकल और प्रकाश विज्ञान और प्रकाश से कण तक के विज्ञान को बड़े अच्छे से श्लोकों के द्वारा बताया गया है। जब हम गैर भारतीयों के योगदान को बढ़-चढ़कर बताते हैं, समझते हैं, समझाते हैं तो भारतीय योगदानो का नाम ना लेना भी भारत के स्वाभिमान के साथ सही नहीं है।
चौथा लेक्चर डॉक्टर कश्टी बल्लभ जोशी ने दिया उन्होंने बताया कि निश्चित तौर पर नैनोपार्टिकल्स पर भारत में पहले भी काफी काम हो रखा है। लेकिन आज भी नैनोपार्टिकल्स के विज्ञान में भारत का योगदान कम नहीं है। अपने प्रयोगशाला से हुए खोजों के बारे में उन्होंने बताया कि स्मॉल पेप्टाइड के संरचनात्मक परिवर्तन और उसके एनवायरमेंट, एनर्जी और भी कई क्षेत्रों में होने वाले एप्लीकेशन के मामले में उनकी प्रयोगशाला दुनिया में अग्रणी है। जिसका गवाह मौजूदा समय में होने वाले उनके बेहतरीन पब्लिकेशन हैं। कार्यक्रम का संचालन मुस्कान मालवीय, प्रिया शर्मा और कृष्णकांत ने किया।
दूसरे दिन 2 अगस्त 2024 को 40 से अधिक विद्यार्थियों ने ओरल प्रेजेंटेशन और क्विज प्रतियोगिता में भाग लिया। कार्यक्रम के अंतिम चरण में विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. एस पी बनर्जी को मुख्य अतिथि एवं चार पूर्व विभागाध्यक्षों प्रो. अर्चना पांडे, प्रो. ए के बनर्जी, प्रो. के एस पित्रे, एवं प्रो. ओ पी श्रीवास्तव को विशिष्ट अतिथि के तौर पर आमन्त्रित किया गया। इन सबने कार्यक्रम में सबकी सहभागिता को सराहा। इस अवसर पर विभाग के शिक्षकों एवम् विद्यार्थियों को जिन्होंने इस वर्ष देश में अलग अलग प्लेटफॉर्म पर विभाग का नाम फैलाया उन्हें भी सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ अभिलाषा दुर्गाबंशी ने किया। एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉक्टर नीरज उपाध्याय ने किया। कार्यक्रम के आयोजन सचिव डॉक्टर पुष्पल घोष एवम् डॉक्टर नीरज उपाध्याय थे और संयोजक डॉक्टर नेत्रपाल सिंह, डॉक्टर रितु यादव, डॉक्टर अभिलाषा दुर्गवंशी, डॉक्टर केबी जोशी और डॉक्टर कल्पतरु दास थे। कार्यक्रम के चेयरमैन प्रोफेसर ए पी मिश्रा थे। एवं कार्यक्रम के समन्वयक प्रो रत्नेश दास, प्रो. विजय वर्मा, डॉक्टर. के के राज, डॉक्टर विवेक तिवारी, डॉक्टर अमूल केशरवानी, डॉक्टर संदीप शुक्ला, डॉक्टर विजयश्री सूर्यवंशी, डॉक्टर अनिल बाहे रहें। कुल मिलाकर कार्यक्रम सारगर्भित रहा। जिसमें हमारी भारतीय ज्ञान परंपरा के बारे में ही नहीं बल्कि मौजूदा समय में ज्ञान – विज्ञान में हमारे योगदानों के बारे में भी बताया गया।