गुरु कभी झूठ नहीं बोलता और झूठ बोलता है वह गुरु नहीं होता मुनि श्री

सागर

मुनि ब्रत में कभी दोष नहीं लगना चाहिए ऐसा मूलाचार में लिखा है। वहाँ मत जाना जहां मुनिव्रत में दोष लगे। गुरु से अपनी पहचान मत करो, गुरु कभी झूठ नहीं बोलता है और झूठ बोलता है वह गुरु नहीं है। यह बात निर्यापक मुनि श्री सुधासागर महाराज ने भाग्योदय तीर्थ में धर्म सभा में कही। उन्होंने कहा कि अंधेरी रात में हमने भगवान को पहचान लिया क्योंकि चौथे काल में आँखें ऐसी होती थी जो भगवान को पहचान जाती थी लेकिन इस काल में यह संभव नहीं है
पंचम काल का हर व्यक्ति अंधा है हमारे पास वो आँखें नहीं है जिसे हम धर्म को देख सकें, जान सके। पंचम काल में जीने वाले सभी व्यक्ति मिथ्या द्ष्टी होकर जन्मे हैं। हम भगवान को नहीं जानते भगवान सामने भी आ जाए। तो हम नहीं पहचान पाएंगे क्योंकि हमने भगवान की प्रतिमाओं को देखा है असली रूप में भगवान नहीं देख पाए हैं। जिन्होने यदि भगवान को पहचान लिया है तो इससे बड़ा अतिशय हो ही नहीं सकता है। जैन कुल में जन्म लेकर यदि भगवान को नहीं पहचानते तो जैन कुल में जन्म लेना बेकार है। मुनिश्री ने कहा की दो ही रास्ते या तो हीरा वनो या जौहरी बनो, हीरे की कीमत जौहरी के कारण होती है। हीरे की कीमत जौहरी से होती है। क्योंकि हीरा अपनी कीमत स्वयं नहीं बताता है आप हीरे है हीरा कभी नहीं बोलता है कि मेरा मोल कितना है। भगवान हीरा है। बड़ों के द्वारा किया जाने वाला अपमान, अपमान नहीं होता वह सम्मान माना जाता है। छोटे बडों को हमेशा उलाहना देते हैं। मुनिश्री ने कहा कि इस काल में मोक्ष जाने के रास्ते बंद है चौथे काल में ही मुनि बनकर भगवान बने है। इस काल में यह संभव नहीं है। सफलता के लिए जितनी मेहनत हम करते हैं इतनी जरूरत नहीं है धर्म जितना हम कर रहे इतनी जरूरत नहीं है। कम खाने की डॉक्टर कहते हैं जितना तुम खाते हुए इतनी जरूरत नहीं है लेकिन यहाँ पर तुम्हारी भूख मिट नई रही है। तुमने कितना ही धर्म किया हो, पूजा की हो पाठ किया हो। शांतिधारा लेकिन भूलकर भी भगवान की कोई बुराई मत करना इस बात का ध्यान रखना उलाहना देने से हमारा बहुत नुकसान होता है। क्योंकि भगवान सबका भला करते हैं और हमेशा भलाई ही करते है।

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