



सागर
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*डिस्क्लेमर ..इस व्यंग्य का संबंध किसी व्यक्ति, व्यक्ति विशेष, समूह या घटना से नहीं है यह साहित्य की व्यंग्यात्मक शैली पर आधारित है…जे.एन.श्रीवास्तव*
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भस्मासुर की कथा तो लगभग सभी ने सुनी,पढ़ी या टीवी सीरियल में देखी होगी, भस्मासुर एक पौराणिक पात्र था जिसने भगवान शिव को प्रसन्न कर वरदान मांगा था कि वह जिसके सिर पर हाथ रख दे वह भस्म हो जाये मतलब उसका अस्तित्व समाप्त हो जाये, भगवान शंकर के वरदान से शक्तिशाली होकर उसका उपयोग कर वह भगवान शंकर को ही भस्म करना चाहता था, मतलब जिसने उसे सामर्थ्यवान बनाया उसी को मिटाना चाहता था, तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर उसका अंत किया था, पौराणिक पात्र का तो अंत हो गया था, *लेकिन भस्मासुर की प्रवृत्ति अमर हो गई,वह आज भी किसी न किसी रूप में सामने आती ही रहती है,आप अपने चारों ओर नजर घुमायेंगे तो आप लगभग हरेक क्षेत्र में भस्मासुर की प्रवृत्ति को जीता जागता पायेंगे* लेकिन अब उसका अंत करने वाला कोई दिखाई नहीं देगा, सांसारिक गतिविधियों में आप ऐसे कई लोगों को देख सकते हैं और जानते भी होंगे जिन्होंने अपने आश्रयदाता को भस्म करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी चाहे वह उनके नियोक्ता रहे हों, गुरु हों, मित्र, शुभचिंतक या गाडफादर, या वो लोग जिन्हें उन्होंने आगे बढ़ने में अपना योगदान दिया हो, *स्वार्थ, ईर्ष्या, द्वेष,छल कपट से परिपूर्ण मानसिकता भस्मासुर की आत्मा है, वह किसी भी परिस्थिति में सिर्फ अपना वर्चस्व चाहती है ,और इसके लिए मानवीय संवेदनाओं का उसके मन में कोई स्थान नहीं है,* आज के समय में भी कई भस्मासुर जैसे भक्तों का बोलबाला है जो अपने हित के लिये अपने आराध्य को भी नहीं बख्शेंगे, उसके तख्तोताज को पलट कर स्वयं उस पर कब्जा करना चाहते हैं, लोग यह भूल जाते हैं कि सर्वोच्च सत्ता ईश्वर की ही है और सर्वोच्च न्यायाधीश भी ईश्वर ही हैं, कर्मों का फल निश्चित है, *यदि आपने किसी को किसी समय कुछ कटु अनुभव दिये हैं तो एक समय ऐसा जरूर आयेगा कि उन्हीं परिस्थितियों में वहीं कटु अनुभव आप भी करेंगे, विज्ञान भी मानता है कि इतिहास अपने आप को दुहराता है,रिकेप्यूलेशन की थ्योरी इसी पर आधारित है,* इसलिये लोगों को अपनी भस्मासुर की प्रवृत्ति पर नियंत्रण रखना चाहिये और दूसरों की भस्मासुर वाली प्रवृतियों से अपना बचाव करना चाहिये। यदि आप हर प्रकार से संपन्न और शक्तिशाली है तो उसका उपयोग जन कल्याण के लिये कीजिये न कि किसी को भस्म करने के लिये, क्योंकि संसार में चिरस्थाई कोई भी नहीं है विख्यात बनने की कोशिश कीजिये,कुख्यात बनने की नहीं, भले ही आप किसी के एहसानों को न माने पर कम से कम उसका बुरा करने का प्रयास न करें, अपनी ईर्ष्या द्वेष को अपनी अच्छाइयों पर हावी न होने दीजिये, संसार में ऐसे कई लोग आपको मिल सकते हैं जिनसे आपका कुछ लेना देना नहीं है, लेकिन वह आपसे ईर्ष्या करते होंगे और अकारण आप की निंदा कर आत्मसंतुष्टि पाते होंगे उनके मन में आपका अशुभ देखने की चाह होगी लेकिन वह सुधरना नहीं चाहेंगे, और कर्मों का फल भोगने पर किसी न किसी को दोषी ठहरायेंगे।
ये लेखक के निजी विचार है (साभार)